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लेखनी कहानी -17-Oct-2022 सिंहनी

सिंहनी : भाग 1 राधा 


सिया की पहली पोस्टिंग थी । उसे प्रथम नियुक्ति महिला जेल में मिली थी । सिया का सपना था जेलर बनना । वह चाहती थी कि वह अपराधियों के बीच रहकर अपने आचरण, बुद्धि, विवेक, योग, व्याख्यान और तर्क वितर्क से  उनका हृदय परिवर्तित कर उन्हें समाज की मुख्य धारा में लेकर आये । आज ही पुरानी जेलर अनुसूइया की सेवानिवृत्ति भी थी । क्या गजब संयोग था जब एक जेलर अपने 36 साल के कैरियर को अलविदा कह रही थी तो दूसरी जेलर उस कार्यक्षेत्र में पदार्पण कर रही थी जहां पर कोई महिला आना नहीं चाहती थी । अपराधियों के मध्य कौन रहना चाहता है । फिर यह कहावत भी तो है कि काजल की कोठरी में कैसे भी सयानो जाये ,काजल को दाग भाई लागै ही लागै । पर सिया तो इस काजल की कोठरी में जानबूझकर आई थी । 

सिया की हिम्मत की दाद अनुसूइया जी ने इस कदर दी कि सिया गदगद हो गई वरना अब तक वह सबके ताने ही सुन रही थी । हर कोई उसे शोले फिल्म के डायलाग "हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं" कहकर चिढा रहा था । वह शोले फिल्म की "असरानी" नहीं बनना चाहती थी बल्कि "कर्मा" फिल्म की "दिलीप कुमार" बनना चाहती थी । आज उसका पहला दिन था जेल में । उसने कार्यभार ग्रहण किया और थोडी औपचारिकताएं पूरी करके वे दोनों हॉल में आ गई जहां पर समस्त कैदी महिलाएं पहले से ही बैठी थी । सेवानिवृत्ति और स्वागत समारोह एक साथ हो रहा था । 

वे अभी कार्यक्रम शुरू कर पाती इससे पहले उनके सहायक ने सूचना दी कि एक नई महिला कैदी उनकी जेल में आई है । अनुसूइया जी ने उसे वहीं हॉल में बुलवाने के लिये कह दिया । थोड़ी देर में सहायक एक कैदी को वहां पर ले आया । उसका चेहरा देखकर सिया, अनुसूइया जी और सभी कैदी सहम गये । तेजाब से जला हुआ चेहरा आंखें छोटी छोटी सी गढ्ढे में गिरी हुई प्रतीत हो रही थी । उसके चेहरे पर तेज था और होठों पर मुस्कान थी । उसके चेहरे पर अपराधी होने का कोई भाव नहीं था । कोर्ट ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी । 

उसे देखकर सिया से रहा नहीं गया । वह जानना चाहती थी कि उसने ऐसा क्या किया है जो उसे आजीवन कारावास की सजा मिली थी । इस पर अनुसूइया जी खड़ी हुई और कहने लगीं 
"आज के दिन क्या अद्भुत संयोग बना है जब मैं सेवानिवृत्त हो रही हूं और नई जेलर सिया शर्मा ज्वाइन कर रही हैं । और एक संयोग और भी बन गया है कि आज हमारे बीच में राधा भी आई हैं । अब ये भी हमारे परिवार का ही हिस्सा बन रही हैं । आओ हम लोग नई जेलर साहिबा और राधा बहन का तालियों से स्वागत करें । 

पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा । अनुसूइया जी कहने लगीं "यूं तो यह जगह ऐसी है जहां किसी को नहीं आना चाहिए।  मगर परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं कि यहां न चाहते हुए भी आना पड़ता है । हम आज राधा बहन से जानना चाहेंगी कि वे किन परिस्थितियों के कारण यहां तक पहुंची हैं । 

हॉल में सन्नाटा व्याप्त हो गया । सबकी निगाहें राधा की ओर उठ गईं । राधा भी अपनी कहानी सुनाने के लिए तैयार हो गई।  
"सखियो, यहां मैं भी नहीं आना चाहती थी मगर एक दरिन्दे ने मुझे यहां आने के लिए विवश कर दिया । मैं कॉलेज में पढती थी और रोजाना स्कूटी से कॉलेज आती जाती थी । रास्ते में गुण्डों की एक टोली खड़ी रहती थी जो आने जाने वाली हर लड़की पर अश्लील फब्तियां कसती रहती थी । मैं कोई अलग से तो थी नहीं इसलिए मुझे भी ऐसी फब्तियां रोज सुनने को मिलती थीं । मां ने कह रखा था कि ऐसे शोहदों से उलझने की आवश्यकता नहीं है, बस सीधे आओ और सीधे जाओ । तो मैं अपमान का घूंट पीकर वहां से निकलती थी । 
एक दिन मैं वहां से जा रही थी तो मैंने देखा कि एक लड़का मोटरसाइकिल आड़ी खड़ी करके मेरा रास्ता रोक कर खड़ा है । मैंने उसे मोटरसाइकिल हटाने के लिये कहा तो वह कहने लगा "मैडम, शादाब फ्री में कुछ नहीं करता है । मोटरसाइकिल हटाने का पारिश्रमिक देना होगा" 
"क्या पारिश्रमिक है आपका" ? 
"ज्यादा कुछ नहीं , बस एक चुम्मा" 

उसकी इस बदतमीजी पर मैं बहुत गुस्सा हुई और उसमें एक तमाचा जड़ दिया । शायद वो मुहल्ले का दादा था इसलिए वह उस थप्पड से बुरी तरह झल्ला गया । उसने गुस्से में आकर मोटरसाइकिल पर रखी तेजाब की बोतल मेरे मुंह पर फेंक दी । मैं तेजाब से नहा गई और मेरा चेहरा आप लोगों के सामने है ही , बताने की जरूरत नहीं है कि कैसा हो गया । मैं दो महीने तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ती रही और सोचती रही कि मैं इस चेहरे को लेकर कैसे जी पाऊंगी । बस, तभी सोच लिया था कि मुझे कुछ तो करना है । मैंने थाने में रिपोर्ट लिखाई । बड़ी मुश्किल से उसे पुलिस ने पकड़ा मगर कोर्ट ने उसकी उसी दिन जमानत ले ली और वह छूट गया । वह सीधा हमारे घर आया और घर में तोड़ फोड़ करने लगा । मां को मारने लगा और मेरे सामने ही मां की साड़ी खींचकर उन्हें निर्वस्त्र करने लगा । मेरा खून खौल गया और मैं किचन से चॉपर लाकर उस पर पिल पड़ी।  उसे जहन्नुम भेजकर ही दम लिया । बस, कोर्ट ने अपना काम जो मेरी "मानसिक हत्या" के समय उसे सजा नहीं देकर अब उसकी हत्या पर कर दिया । पर मुझे अपने कृत्य पर अफसोस होने के बजाय गर्व है कि जो काम न्यायालय को करना चाहिए था, वह मैंने कर दिया । उसी के परिणामस्वरूप मैं आज आप सबके बीच में हूं" । राधा की आंखें गर्व से चमक रही थी । पूरा हॉल एक बार फिर से तालियों से गूंज उठा । 

सिया खड़ी हो गई और राधा को इंगित करके कैदियों से पूछने लगी 
"देखो देखो कौन आई" 
"सिंहनी आई, सिंहनी आई" 
समवेत स्वर ने राधा का भव्य स्वागत किया । 

श्री हरि 
17.10.22 

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19 Comments

Abhinav ji

27-Oct-2022 08:55 AM

Nice

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Palak chopra

18-Oct-2022 11:37 PM

Achha likha hai 💐🙏

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Oct-2022 03:30 AM

धन्यवाद जी

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Gunjan Kamal

18-Oct-2022 10:12 PM

बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

19-Oct-2022 03:30 AM

धन्यवाद जी

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